Sunday, May 12, 2013

चूड़धार मंदिर की अविस्मर्णीय यात्रा

पिताश्री  की पद्दौन्नती के उपरांत वो लगभग 7 साल तक बाहर ही रहे। इसके पहले भी पिताजी धार्मिक स्थलों की यात्रा पर ले जाते रहे थे लेकिन पिछले 7 सालों में अत्यधिक कार्यभार होने के कारण कोई यात्रा करना असंभव सा हो गया था। दो महीने पहले पिताश्री वापस नाहन में स्थानांत्रित हुए। 
Churdhaar Mountain range as seen on Google Earth
Churdhaar Mountain as seen on Google Earth
14 एवं 15 अप्रैल को अवकाश था इसलिए पिताजी ने चाचाजी के साथ मिलकर चूड़धार जाने का कार्यक्रम  बनाया। ताउजी को तो कुछ कार्य था लेकिन ताईजी और अंकित ने हमारे साथ चलने की सहमति दिखाई। चाचाजी चाचीजी, उनके बच्चे स्वाति और राहुल, मम्मी, पापा, सुमिति और आदर्श, बन गया काफिला। पिताजी ने एक जानकर की मदद से एक महिंद्रा जीप की व्यवस्था कर ली थी। गाडी निर्धारित समय प्रातः 6 बजे घर पहुँच गयी थी। लगभग 7 बजे हम नाहन से अपने गंतव्य की और रवाना हो गए। चूड़धार मंदिर पहुँचने के बहुत सारे रास्ते हैं, आपसे सहमति से हरिपुरधार मंदिर वाले रस्ते से जाना तय हुआ, चूँकि हम में से बहुत लोगो ने हरिपुरधार मंदिर भी नहीं देखा था। रेणुका से 10 की०मी० आगे धनोई नामक जगह पर एक ढाब्बे पर हमने नाश्ता किया। जब पिताजी राजाना कार्यरत थे तो अक्सर यहाँ पर जलपान किया करते थे। संगडाह/राजाना की और जाने वाली बसे इसी जगह पर जलपान ग्रहण किया करते हैं। आगे का सफ़र करते हुए हम 10:45 बजे हरिपुरधार पहुंचे, रास्ते में ब्रास के फूलों से लदे पेड़ बहुत ही मनमोहक दृश्य उत्पन कर रहे थे। हरिपुरधार मे देवी के दर्शन किए। मंदिर  में हमारी मुलाकात अपने स्कूल के एक अध्यापक ग्यार सिंह नेगी जी से हुई। उनसे भी चूड़धार के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। इसके बाद हम सफ़र में आगे बढते हुए चाड़ना गाँव पहुंचे। गाड़ी के ड्राइवर भैया यही के रहने वाले थे। गाड़ी का एक टायर पंक्चर हो गया था वो ठीक किया। यहाँ चाय पीने के बाद 12:30 बजे हम लोग आगे रवाना  हुए।
Route Map
तक़रीबन 1 बजे हम नोहराधार पहुँच गए। अब यहाँ से 18 की मी की चढ़ाई पैदल यात्रा से पार करनी थी। पुरे जोश के साथ, कंधो पर सामान लाद कर, हमने ऊपर चढ़ना शुरू किया। अपनी सहूलियत के लिए यात्रा को मैंने 3 चरण में बाँट लिया है, हालांकि यात्रा के दौरान हमने दसों बार रूककर आराम किया होगा। प्रथम चरण में नोहराधार के पास में पड़ने वाले छोटे छोटे गावं थे। बहुत से ग्रामीण मिले जो अपने अपने काम में व्यस्त थे। बहुत से लोगो की आँखों में कुछ आश्चर्य भी नज़र आ रहा था, अपने जानवरों को चराते बच्चे, बांसुरी की धुनों से शांतिमय घाटी गूँज रही थी। इसके बाद शुरू हुआ ब्रास के फूलों का जंगल। लाल गुलाबी फूलों से लदे पेड़। बीच में पानी वाली, एक जगह रूककर हमने दोपहर का भोजन किया। पिताजी, माँजी चाचाजी और ताईजी ने तो व्रत रखा हुआ था इसलिए उनके लिए फलो का प्रबंध किया हुआ था। और ऊपर चड़ने पर हम एक मैदानी जगह पर पहुंचे, यहाँ पर टेंट लगाने के लिए कुछ चौंतरे जैसे बनाये हुए थे। ड्राईवर भैया ने बताया विदेशी सैलानी जब यहाँ आते हैं तो पहली रात यहाँ बिताकर आगे बड़ते हैं। यात्रा का प्रथम चरण यहीं समाप्त होता है।

On the way to Churdhaar Temple
यात्रा के दुसरे चरण में भी हमको जंगल से होते हुए चढ़ाई करनी थी। जंगल में देवदार जैसे दिखने वाले पेड़ थे। पेड़ो के बहुत से ठूंठ मिट्टी के कटाव की वजह से गिरे हुए थे। व्यापारिक दृष्टी से देखा जाये तो बहुत सी अच्छी लकड़ी यहाँ बर्बाद पड़ी थी। एक जगह पर इसी लकड़ी का सदुपयोग करके छोटी से वर्षाशालिका/आरामघर जैसा कुछ बनाया हुआ था। थोड़ी देर बारिश की बूंदाबांदी हो चुकी थी, लेकिन वर्षा जल्दी रुक जाने पर हम सुरक्षित एवं हर्षित महसूस कर रहे थे। रास्ते के लिए लाये स्नैक्स, बिस्किट वगेराह खा खा कर अब बोर हो चुके थे हालाँकि अभी और भी स्नैक्स बचे हुए थे। ड्राईवर भैया ने बताया यहाँ पर जड़ी लग जाती है और दम घुटने लगता है और इससे बचने के लिए पुदीना और प्याज दिया जाता है। असल में इस चरण में हम पहाड़ी पर काफी ऊँचाई पर पहुँच जाते हैं आक्सीजन का स्तर थोडा कम हो जाता है, और चढ़ाई के कारण शरीर में पानी की भी कमी हो जाती है, ऐसे में पुदीना अवं प्याज लाभदायक होता हैं। दूसरा चरण समाप्त होते हुए हमें बर्फ के दर्शन हो गए थे, अब हम पहाड़ी की चोटी पर थे। यहाँ एक वर्षा शालिका और एक कच्चा झोपड़ा था। ड्राईवर भैया ने बताया की बर्फ पिंघलने के उपरांत चरवाहे यहाँ आकर रहते हैं। वर्षा शालिका में बहुत से लोगो ने नाम लिखे थे, यहाँ आराम करते समय मैंने भी अपना नाम यहाँ दर्ज कर दिया। यहाँ रुकने पर थोड़ी ठंडक महसूस हुई, चलते वक़्त उत्पन गर्मी से ठण्ड का पता नहीं चल रहा था। यहाँ पर मंदिर की दूरी पौने 4 की०मी० लिखी हुई थी। यहाँ तक रास्ता हरा भरा था अब आगे के पहाड़ो में बहुत सारी बर्फ थी। 
 
Start of third Section
 यहाँ से यात्रा का तीसरा चरण शुरू होता है, हम में से किसी को अंदाज़ा भी नहीं था की ये चरण कितना खतरनाक हो सकता है। सूरज ढल चुका था, अँधेरा हो चुका था, पहले पहाड़ी पार करते ही हमारे सामने बर्फ से भरा हुआ पहाड़ आ गया, इसके पहले तक पहाडियों पर कहीं कहीं बर्फ पड़ी दिखती थी, लेकिन यहाँ पहाड़ियों पर बहुत कम ही हिस्सा ऐसा था जहाँ बर्फ नहीं थी। ड्राईवर भैया के अनुसार उस पहाड़ी के अंत में जो टुकड़ा था उसके ठीक पीछे मंदिर होना चाहिए था। 50 से 65 डीग्री की ढलान वाली बर्फीली पहाड़िया, आज भी उस दृश्य को याद करके रौंगटे खड़े हो जाते हैं। चलते चलते पहाड़ी के आखिरी किनारे पर पहुंचे, लेकिन यहाँ से पहले जैसी ही बड़ी सी पहाड़ी ही दिखाई दे रही थी। अब ड्राईवर भैया ने कहा की शायद इस पहाड़ी के बाद मंदिर है। असल में ड्राईवर भैया बर्फ के वक्त यहाँ नहीं आये थे सभी जगह बर्फ होने से रास्ते का कोई निशाँ नहीं था, बस हम अंदाज़े से एक दिशा में बढ़ते जा रहे थे कुछ वक़्त बहुत अँधेरा रहा लेकिन फिर चाँद निकल आया जिससे हमें बहुत राहत मिली। हम में से बहुत सारे छोटे बच्चे थे अगर कोई भी हिम्मत हार जाता तो बहुत दिक्कत हो सकती थी, लेकिन कोई भी अभी तक घबराया नहीं था। अब तक मैं चाचीजी को मदद कर रहा था क्यूंकि उन्हें बर्फ में चलने में डर लग रहा था, और ये डर जायज भी था, किसी का भी एक गलत कदम हमें सैंकड़ो फुट गहराई में ले जा सकता था। हम सब बच्चे एक दुसरे का हाथ पकडे एक जंजीर बनाकर चल रहे थे बड़े लोगो ने ड्राईवर को देख कर हाथ में लाठियां उठा ली थी कुछ समय बाद में सबसे आगे हो गया और क़दमों के निशानों को अपने जूतों से खोद कर पैर रखने के लिए भरपूर जगह बनाते हुए आगे बढ रहा था। जहाँ बर्फ ज्यादा नर्म या फिसलनी होती वहां सबको आगाह कर देता था जूते पूरी तरह से गीले हो गए थे और पेंट भी घुटनों तक भीग चुकी थी।

कोई भी हिम्मत न हार दे इसिलए मेरा चलते रहना जरुरी था। सब डरे हुए तो थे ही इसलिए सब लगातार "ॐ नमः शिवाय" जप रहे थे। इस जगह पर 10 मी० रास्ता पार करने में मिनटों का समय लग रहा था एक-एक खड्डा बनाते हुए आगे बढता जा रहा था। बीच बीच में जब पैर जवाब देने लगते तो जूते के तस्में बाँधने के बहाने रुक जाया करता था, चलते वक़्त कुछ कुछ समय के बाद घंटियों की आवाज़ सुनाई देती थी इससे हमें मंदिर की दिशा का अंदाज़ा हो जाता था और साथ ही थोड़ी हिम्मत भी बढ जाती थी। मंदिर की घंटी की ध्वनि अब साफ़ सुनाई दे रही थी पहाड़ी के किनारे को पार करने पर मंदिर साफ़ दिखाई देने लगा, अब सभी ने राहत की सांस ली।
वहां पहुँचने पर पता चला की लोग हमें सुरक्षित देख कर बहुत आश्चर्यचकित थे। सुमिति व् स्वाति की हिम्मत देख कर चकित थे। वहां पर लोगों से पता चला की जहाँ से हम आये वो रास्ता बहुत ख़राब है। पिछले कुछ दिनों में वहां से फिसलने से 8 लोग अपनी जान गँवा बैठे थे। पुजारी जी ने बताया की आप लोगो पर भोले नाथ की कृपा थी जो आज हवा नहीं चल रही थी, वहां इतनी तेज़ हवा चलती है की किसी को भी मौत की वादियों में आसानी से धकेल देती हैं। रात के 11 बज गए! बर्फ से ढका हुआ लकड़ी का एक घर था जहाँ एक किनारे में आग जलाकर कमरे को गर्म किया हुआ था। हम सब आग के पास आकर बैठ गए और भगवान् का शुक्र अदा कर रहे थे। बर्फ में चलने से सबके पैर सुन्न हो गए थे। कुछ समय बाद मंदिर के ही एक महात्मा ने हमारे लिए चाय बनवाई। जिन सबका व्रत था वो सब रात में ही मंदिर में जा आये। हम सब बच्चे तो उस कमरे से बाहर निकलने का सोच भी नहीं सकते थे। वहां के लोग सो चुके थे लेकिन हमारे वहां पहुँचने पर उन्होंने हमारे लिए नमकीन चावल बनवाए, सभी भूखे थे और चावल भूख में बहुत अच्छे भी लगे। सभी के मन में ये ख्याल था की कल वापस कैसे जायेंगे। खैर रात को तो वहां उपलब्ध ढेर सारे कम्बल ओढ़ कर सो जाना ही बेहतर लगा।

Lord Shiva's Statue near to Main Temple
Lord Shiva's Statue near to Main Temple
सुबह उठकर पंचस्नान किया और मंदिर में दर्शन किये। पिछले कल 6 लोगो की एक टोली भी आई हुई थी उन्होंने बताया की पहाडो के ऊपर से एक रास्ता है जहाँ बर्फ नहीं है, हम सबने उस रास्ते से ही जाने का निश्चय किया। मंदिर से ऊपर की और चढ़ने पर हम पर्वत की चोटी पर पहुँच गए, सूरज की किरणे यहाँ सीधी पड़ने की वजह से यहाँ बर्फ पिघल चुकी थी। रास्ते का तीसरा चरण जो हमने बर्फीली ढलानों से पार किया था अब पहाड़ के ऊपर से पार किया यहाँ का रास्ता बहुत आसान था। वापसी की यात्रा सुबह 8:30 बजे शुरू हुई थी और शाम 3 बजे हम नोहराधार वापस पहुँच गए थे। उतरते वक़्त चाचीजी और ताईजी की तबीयत ख़राब हो गयी थी। नोहराधार में भोजन करने के बाद हम राजगढ़ से होते हुए यशवंत नगर पहुंचे, यहाँ हमने चाय के लिए गाडी रुकवाई फिर कुछ आराम के बाद आगे के सफ़र के लिए चल पड़े। गाडी में सफ़र करते वक़्त मम्मी की तबीयत ख़राब हो गयी। खैर जैसे तैसे रात 9:30 बजे हम नाहन वापस पहुँच गए थे भगवान् की कृपा से सब सकुशल घर पहुंचे। यात्रा की यादें आजीवन हमारे मस्तिष्क में कैद रहेंगी।
[Note: This was written long back on papers after returning from the journey, was saved in my diary, i just typed it and put it on my blog, All photographs here are taken by my Brother Adarsh Pundir who got chance to visit the place again a year back.]

3 comments:

Swati said...

thats what i was thnking how come u remember each n evrythng!! thank u for revising me the whole journey again..now it feels like yesterday only.. it was really a awsome and adventurous trip..

Sharad Akhilesh said...

Badi hi rochak rahi hogi ye yatra...aur uncle, auntijee, bachche vishesh roop se badhaaii ke paatra hain, jinhone durgam raste ko bhi utne hi utsaah se paar kiya, aur kahin na kahin bholenaath was taking care of you people. Tareef karni padegi is poori yatra ka vivaran hum sabke liye itne detail mein aur saleeke se prastut karne k liye. Padhte hue hamesha yahi laga ki hum bhi journey mein saath hi the. Photos saari achhi hain aur bataa rahi hain vatavaran kitna manmohak aur suramya raha hoga. Aur namkeen chawal with pahadi flavor...ahaha ....:)....at last, this post is a good guide for churdhar goers. Dhanyawaad

sair kar duniya ki galib, zindagani phir kahan:)

vipin said...

This style of writing is called "travel diary"
Hindi ke klisth shabdo ka upyukt prayog ...bahut khoob
Pahad chadne ke teesre charan ki Paristhiti ka jis prakar chitran hua wo kisi ko bhi romanchit karne ke liye kaafi hai ...


Waiting for some more "hindi lekhan" from you sirji ..
Kudo to you !!